“मैने प्यार किया”
मैंने उसे प्यार किया,
उसने खींच के थप्पड़ दिया,
खड़ा था पास में,
क़िताब थी हाथ में,
गिरता तो संभल जाता,
बिन गिरे कैसे संभल पाता,
निकली जो पास से,
फूलों की आड़ ले,
महक सी महकी मेरे साँस में,
मुझे नशा चढ़ आया,
बिन पिये ही ख़ुमार आया,
मैंने उसे बहलाया,
फूलों की तरह सहलाया,
वह साया सा लहराया,
पास खड़े लड़के को,
उसने हाथ लगाया,
मेरा माथा भन्नाया,
मैंने यूँ फ़रमाया,
मुझे छू जाती,
मेरी क़िस्मत ही सँवर जाती,
उसे गुस्सा चढ़ आया,
खींच के थप्पड़ लगाया,
मैंने दूसरा गाल बढ़ाया,
और फ़रमाया,
इस बिचारे पर भी इनायत कीजिये,
एक इस पर भी जड़ दीजिये,
वह शरमाई, सकुचाई, कसमसायी,
और मेरी बाँहों में चली आयी,
उस थप्पड़ का मातम मना रहे हैं,
बीवी बना “शकुन”,
रोज़ थप्पड़ खा रहे हैं ||
– शकुंतला अग्रवाल, जयपुर