मैने देखा है
मैने देखा है आसमान को
टूटकर जमीं पर गिरते हुए।
बड़े -बड़े घरो मै पत्थर के
बीच मे आँसु को दबते हुए।
लगता है दूर से कितना आलीशान
रहा होगा उनका जीवन।
मैने देखा है उन्हें तनहाई मे
उन्हें सर पटक कर मरते हुए।
जो चलते थे समाज मे कभी अकड़कर
मैने देखा है अकेले मे टूटकर बिखरते हूए।
जो कभी इन्सां को इंसान न समझते थे।
मैने देखा है उन्हें इंसान के लिए तरसते हुए।
अपनी आवाज खुद पत्थरों से
टकराकर खुद सुनते हुए।
अक्सर हम बड़े -बड़े घरो को
देखकर अंदाजा लगाते है की
इनके जीवन मे किसी चीज
की कमी नही होगी।
पर सच कहूँ तो हमारे और आपसे
ज्यादा खुश यह भी नही होते है।
इनकी परेशानियाँ हमारे और आपसे
कई गुणा अधिक होती है।
आप कुछ इस तरह से समझे
आप अगर कोई उँचे पद पर
अगर काम कर रहे
आप की जिम्मेदारी कई गुणा बढ जाती है
कहने के लिए वे अधिकारी होते है।
उनके काम शारीरिक कम
मानसिक ज्यादा होता है।
कुछ इसी तरह के दवाब
इनके ऊपर अधिक होते है।
अपने वज़ूद को बनाए रखने का।
जो हमारे आपके देखने पर
नही पता चलता है।
हम आप किसी के साथ
अपना दुख- सुख तो बाँट लेते है।
हमें रोने के लिए कई कंधे भी मिल जाते है।
पर ये लोग अपने झूठे शान दिखाने के लिए
किसी के सामने यह अपना
दर्द भी बयान नही कर पाते है।
इनकी मजबूरी तो देखो
इनका दर्द भी पत्थरों के बीच
चीख -चीखकर खामोश हो जाती है।
इसलिए मै कहती हूँ
मैने देखा बड़े बड़े घरो के
पत्थर तक को रोते हुए।
अनामिका