मैथिल
मिथिलाक सुगंध माटि मधुर सँ भरल अछि,
मैथिली वाणि, हिअसँ जुड़ल,मिठ्ठास मे भीजल।
सादा साड़ी,पान-गंजामे लपेटल,
सादगी केर मूर्ति रूप, लालित्यमे सजल।
संस्कारक धारा, पीढ़ी धरि बहैत,
विद्याक देवी, वैशालीमे रहैत रहलि ।
आशीषक भंडार, पुरखा केर प्रेम,
हर आँगनमे होए, तुलसीक दर्शन ।
गीतमे मखान, पावनिमे मधुमास,
सादगीक मिष्टान, जीवनक अंजोर।
मिथिलाक संस्कार,प्राकृत समाज,
प्रेमक भाषा, अप्पन माट्टि।
—–श्रीहर्ष —-@