मैथिल बाबू (कविता)
प्रत्यय के मुठी बन्न कऽ लिअऽ
इजोतकें सोझा आबि किछ कऽ लिअऽ
अपन आगू झुका देब एक दिन दुनियाँ के
धधकत आँगि पहिने इ भरी लिअऽ
प्रत्यय के मुठी बन्न कऽ लिअऽ
बन्न करब ओ सूरूजक कहर
परेम सनेस दूलार बरसायब
कियो सताबै कनाबै हो किनको
चीरी फारी रख देब तखने हमे
जँ बेगूसरायवाला रंग मे आयब
सगरे विश्व घर आगन हमर
जतह मौन होतइ तिरंगा लहरायब
है दम तऽ रोकऽ लिहेऽ
गाथ नाथ रख देब तखने हमे
जँ गोड्डावाला रंग मे आयब
गर्वसे कहब कहिते रहब
विधापति,महर्षि मेँहीँ,मँगनीराम के
सदिखन सबपे आशीष रहै
सीता बहिन हिय मे बसै
राजा सलहेस जेना महान बनू
भोरका नित्य सिंघेस्वर धाम मे चानर
साँझका देवघर धाम रहै
देख हमे झुक जाउ कने
रंगदारी के बाप हमे
दुनिया मैथिल बाबू नाम कहै
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य