“ मैथिली ग्रुप आ मिथिला राज्य ”
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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उत्तरदायित्व क बोझ स्वतः आबि जाइत अछि ! हमरा लोकनि जाहि देश मे जन्म लैत छी वोही देश क उन्नति क उत्तरदायित्व हमरा लोकनिक कान्ह पर आबि जाइत अछि ! नीक नागरिक बननाय ,कुशल शिक्षक भेनाइ ,शिष्ठ विद्यार्थी ,नीक प्रशासक ,ईमानदार नेता ,निर्विवाद सूचना आ प्रसारण इत्यादि गप्प सपने एहन प्रतीत होइत अछि ! किछु उत्तरदायित्व केँ हम स्वयं ग्रहण करैत छी आ किछु जिम्मेदारी हमरा देल जाइत अछि ! एहि उत्तरदायित्व केँ सब परिस्थिति मे निभाबय पड़ैत छैक अन्यथा हमरा लोकनि केँ अकर्मण्यता क सिंहासन पर आरूढ़ होमय पड़त ! सम्पूर्ण व्यवस्था बूझू चरमरा जाएत ! लोक केँ लोक सँ विश्वास खत्म भ जाएत !
आइ काल्हि फेसबूक क रंगमंच पर अनगिनत ग्रुप साहित्यिक ,कविता ,लिपि ,संस्कृति ,उपन्यास ,खेल -कूद ,चित्रकारी इत्यादि क पादुर्भाव भ गेल अछि ! विश्व क समस्त भाषा आ विभिन्य क्षेत्र क अलग -अलग ग्रुप बनि गेल अछि ! अधिकाशतः ग्रुप अपन उत्तरदायित्व केँ भली भाँति जनैत अछि ! इ अपन उद्देश केँ निर्णय करि एकर निर्माण करैत अछि आ हिकर सफर पारदर्शिता पर टिकल रहैत अछि ! अपन जिम्मेदारी पर इ सब सदैव अबलम्बित रहैत छथि ! ग्रुप क समस्त सदस्य मूकदर्शक नहि होइत छथि अपितु शिष्टाचार ,नियम ,सादगी ,सकारात्मक ,मधुर्यता क देहरि केँ टपबाक क दुस्साहस कदाचित नहि करैत छथि !
विश्व क पटल पर दूटाबे फेसबूक ग्रुप सँ जुड़बा क सौभाग्य हमरा सहो प्राप्त भेल ! एकटा World Literature Academy आ दोसर World Union of Humanists हमर प्रिय ग्रुप मे संमलित अछि ! कोनो ऐड्मिन आ कोनो माडरैटर क अंकुश नहि अछि परंच हुनकर बको दृष्टि सँ संभवतः कोनो अभद्र लेख वा विचार नहि बचि पाओत ! आहाँ विश्व क समस्त भाषा आ लिपि क प्रयोग क सकैत छी ! हम अपन बात ,कविता ,खिस्सा-पिहानी ,भाषा ,लिपि ,संस्कृति ,परिवेश इत्यादि क चर्चा अपन मैथिली भाषा मे करैत छी ! विश्व क समस्त लोक एकरा पढ़इत आ समालोचना करैत छथि ! हमहूँ विश्व क कृति केँ पढ़इत छी ! हुनकर भाषा आ विधा केँ नजदीक सँ जानय चाहैत छी !
संकीर्णता के शिकंजा मे अधिकांशतः मैथिली ग्रुप फँसल दिखा पड़ैत अछि ! जाहि मैथिली भाषा केँ सम्पूर्ण विश्व स्वीकार करैत अछि वैह मैथिली ग्रुप कोनो अन्य भाषा केँ अस्पृश्यता क नजरि सँ दखैत अछि ! मैथिल अधिकाशतः अपन भाषा ,रीति -रिबाज़ सँ विमुख भेल जा रहल छथि ! मैथिली क अपन लिपि अछि परंतु दुर्भाग्य सँ बहुत कम लोक एकरा पढ़य आ लिखय मे प्रयोग करैत छथि ! आब त गामो मे अधिकांश लोकनि मैथिली केँ अस्पृश्यता क नज़रि सँ देखैत छथि ! बाहर रहय वला मैथिल परिवार अधिकाशतः मैथिली केँ छोड़इत जा रहल अछि !
ढाढ़स ,सांत्वना ,प्रोत्साहन आ उदारता क छोड़ि अधिकांशतः ऐड्मिन ,मोडरेटर एवं मैथिल महंत लोकनि निरंकुशता क अंकुश सँ लोक केँ हतोउत्साह करैत रहैत छथि ! नीक -नीक उत्कृष्ट उपयोगी लेख,विचार,कविता,खिस्सा आ समालोचना केँ बहुत दिन धरि पेंडिंग मे रखि देताह आ अंततः डिक्लाइन करि देताह ! उल -जलूल पोस्ट के अप्रूव्ड करबा मे अपना के गर्व अनुभव करताह ! कखनो -कखनो नरि क असम्मान क कविता केँ स्थान देल जायत परंच मैथिली साहित्यक परिचर्चा केँ डिक्लाइन करि देताह ! आइ संभवतः कियो गिनल -चुनल ऐड्मिन आ मोडरेटर हेताह जे एहन संक्रामक रोग सँ ग्रसित नहि छथि ! महंत लोकनिक गप्प की कहू ? इएह महंत मैथिली साहित्यक विकास क अवरोधक तत्व छथि ! इ उपदेश देताह मुदा क्षेत्रवादिता , जातिवादिता आ आलोचना क आवरण संभवतः कहियो उतारि नहि सकताह !
अपन जिम्मेदारी केँ जाधरि ऐड्मिन ,मोडरेटर आ तथाकथित मैथिल महंत नहि बुझताह , पारदर्शिता क नियम केँ अंगीकार नहि करताह ताधरि मैथिली क आधार स्तम्भ संभवतः कखनो सुदृढ़ नहि भ सकत ! ढाढ़स ,सांत्वना ,प्रोत्साहन आ उदारता क अस्त्र सँ अपन मैथिली भाषा आ संस्कृति क प्रचार -प्रसार भ सकैत अछि आ मिथिला राज्य क निर्माण क मार्ग प्रशस्त भ सकैत अछि !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत