मैडम का कुत्ता
लघु कथा :
मैडम का कुत्ता
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
‘‘मैडम आज तो शायद ही कोई ऐसा परीक्षा केन्द्र रहा हो, जहाँ हम गए हों और हमने चार-पाँच यू.एम.सी. न बनाए हों .” -परीक्षा उड़नदस्ता ड्यूटी से लौटकर अपनी बाॅस को दिनभर की प्रगति रिपोर्ट देते हुए कहा था उसने।
मैडम के चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही थी कि वह (मैडम) उसके काम से बेहद संतुष्ट है, तभी उसने आगे कहा था – ‘‘और सुनो मैडम! आज तो हमने बेेवज़ह यू.एम.सी. ही नहीं बनाए बल्कि एक-दो निजी स्कूल संचालकों को अन्दर भी करवा दिया है पुलिस वालों को कह कर।’’
‘‘वो कैसे ?’’- मैडम ने हैरानी से पूछा था।
‘‘कैसे क्या मैडम, जब हमारी फलाइंग एक परीक्षा केन्द्र पर पहुँची तो वो मुझसे जान-पहचान जताने आ पहुँचे थे – मुझसे हाथ मिलाने की कोशिश कर रहे थे – भूल गए थे कि आजकल मैं मैडम की फलाइंग में हूँ न कि . . .।’’ – वह कहता जा रहा था कि इसी बीच मैडम बोल पड़ी थी – ‘‘वेरी गुड – शाबाश !’’
‘‘थैंक यू मैडम – थैंक यू।’’ – मैडम का धन्यवाद करते हुए खुशी से उछल पड़ा था वह।
‘‘थैंक यू तो ठीक है मिस्टर राॅकी – पर फलाइंग की गाड़ी में बैठकर कहीं तुम भी तो यह नहीं भूल जाते हो कि तुम्हें टूटी साइकिल से उतार कर चकाचक गाड़ी में मैंने बैठाया है ?’’ – मैडम ने कहा था।
‘‘नहीं मैडम, मैं यह कैसे भूल सकता हूँ।‘‘ – अगर मैं यह सब भूलता तो मेरे दिनभर के शिकार शाम को मुझसे मिलने आते न कि आपसे।’’ – कहते हुए उसने हाथ जोड़ दिए थे और मैडम ने कहा था उससे – ‘‘उठो इसी बात पर फ्रिज़ से ठण्डे दूध की बोतल निकालो और पी जाओ गटागट।’’
उसने गर्व महसूस करते हुए फ्रिज़ से दूध की बोतल निकाली और पीने लगा। तभी मैडम का पालतु कुत्ता जाॅकी वहाँ आया और भौं-भौं करके भौंकने लगा।
‘‘ठहरो तुम्हें भी दूध पिलाउंगी – यह तो इसी का है इसे ही पीने दो।’’ – मैडम ने कहा था और मैडम का पालतु कुत्ता जाॅकी चुप हो गया था। यह सब देखकर अब बोतल का दूध उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था कि तभी बाहर कुछ शोर सा सुनाई दिया। इसी शोर में से जब स्पष्ट आवाज़ें आने लगी तो मैडम के साथ-साथ वह भी बिल्कुल साफ-साफ सुन रहा था – ‘‘मैडम का कुत्ता? – हाय! हाय!!’’
‘‘जाओ देखो दरवाज़े पर कौन लोग हैं ?’’ – मैडम ने कहा तो वह समझ नहीं पाया था कि अब दरवाज़े की तरफ मैडम के पालतू कुत्ते जाॅकी को जाना चाहिए कि उसे। तभी दरवाज़े पर शोर बढ़ा और फिर गूँजा -‘‘मैडम का कुत्ता? – हाय! हाय!!’’
अब मैडम उससे मुखातिब हुई और कहा – ‘‘मि. राॅकी सुना नहीं तुमने, मैंने क्या कहा – जाओ जाकर देखो तो सही ये कौन लोग हैं?’’
इस बार मैडम ने उससे मुखातिब होकर उसका नाम लेकर कहा था तो वह सबकुछ समझ गया था। पर अब बाहर जाए तो जाए कैसे? उसे मालूम था कि बाहर कौन लोग हैं और किसे पुकार रहे हैं। अब वह मैडम के कुत्ते जाॅकी की तरफ देख रहा था और जाॅकी उसकी तरफ – और बाहर से रह-रह कर शोर आ रहा था और शोर में उभर रहा था बस एक ही नारा – ‘‘मैडम का कुत्ता? – हाय! हाय!!’’
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
अध्यक्ष आनन्द कला मंच एवं शोध संस्थान
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग कांेट रोड़, भिवानी – 127021 (हरियाणा)