मैं
क्या करूँ उसके लिए रो कर जो किस्मत में नहीं।
और किस्मत से जियादा पाना हसरत में नहीं।
मैं बना पाऊँ दिलों में एक छोटी सी जगह,
नाम इज्ज़त से बड़ी ताबीर दौलत में नहीं।
बात बेबाकी से कहना और सुनना है पसंद,
चापलूसी जी हुजूरी मेरी फितरत में नहीं।
रास्ते अपने तरीके से बना कर मैं चलूंँ,
भीड़ का हिस्सा बनूंँ यह मेरी आदत में नहीं।
कामयाबी की इबारत मेरी मिहनत ख़ुद लिखे,
मेरी दिलचस्पी कभी रहती सियासत में नहीं।
काम में ईमान पूरा कोशिशें सौ फीसदी,
बेइमानी धोखेबाजी मेरी नीयत में नहीं।
मैं नहीं करता कभी परवाह कल या आज की,
मेरी ख़ुद्दारी कभी बिकती किसी क़ीमत नहीं।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक