“मैं”
आखिर ये “मैं” क्या है ?
क्या ये अभिमान है
या स्वाभिमान है
या आत्मसम्मान है
या रहेगा एक प्रश्न हमेशा
उत्तर है जिसका अंहकार से भरा
“मैं”अगर अंहकार है तो
आत्मसम्मान फिर कैसे परिभाषित होगा
जब मैं ही नहीं तो मेरा स्वाभिमान कहाँ होगा
आखिर ये “मैं” क्या है ?
क्या ये अभिमान है
या स्वाभिमान है
या आत्मसम्मान है
या रहेगा एक प्रश्न हमेशा
उत्तर है जिसका अंहकार से भरा
“मैं”अगर अंहकार है तो
आत्मसम्मान फिर कैसे परिभाषित होगा
जब मैं ही नहीं तो मेरा स्वाभिमान कहाँ होगा