मैं
मैं तो मैं था ज़िन्से बाज़ार न था
वर्ना क्या कोई ख़रीदार न था
मैंने ही हर एक से मुँह मोड़ लिया
वर्ना क्या कोई मददगार न था
दश्तगर्दी थी मुक़द्दर में लिखी
वर्ना क्या शहर में घर-बार न था
भोली सूरत ने मुझे लूट लिया
वर्ना क्या मैं भी ख़बरदार न था
मेरी क़िस्मत ने मुझे धोखा दिया
वर्ना क्या मैं भी अदाकार न था
शिवकुमार बिलगरामी