मैं
एक छोटा सा बिंदु,
फैलकर इतना बड़ा हो गया-
की वह बन गया मैं,
और मैं होगया उसका दास-
उसने मुझे लील लिया।
वह सब कूछ-
और मैं कुछ नही,
इसने मुझे कितना-
भरमाया, भटकाया
लाख चाहने पर भी-
मैं उबर नही पाया।
अब मैं समझ गया-
इसे माफ नही करूँगा,
चाहे मुझे फांसी हो जाये-
चाहे मैं जीवन भर,
भटकता रहूं या-
चैन से सो जाऊं।।
फांसी—समाजिक प्रतिष्ठा, सम्पत्ति, और शक्तिकेकहोने और छीन जाने का प्रतीक है।।