मैं
मैदान ए शायरी का एक प्यादा हूँ मैं,
. इस महदूद सल्तनत का वजीर नहीं हूँ
ग़ज़ल के नाम पे बस हाल ए दिल बयां करूँ,
. मैं बद्र , गालिब , या मीर नहीं हूँ
मानता हूँ तेरी तारीक ज़िन्दगानी में,
. कुछ पल टिमटिमा सकता हूँ मैं भी
पर यही बात सच है इसे मान लो,
. मेरे दोस्त ! मैं तेरी तक़दीर नहीं हूँ …!