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21 Apr 2020 · 1 min read

मैं हक़ीक़त में था उसके

मैं हक़ीक़त में था उसके या था उसके ख़्वाब में
आग़ाज़ से ही कमज़ोर था मैं दिल के हिसाब में।

यूँ तो हर बात में उसकी कोई एक बात होती थी
मैं फ़क़त ढूंढ ना पाया सवाल उसके जवाब में।

राब्ता नाजाने कितने दिलों का उसके दिल से था
एक मेरा ही नाम शुमार न था उसकी किताब में।

उसकी आदत-ए-बेरुख़ी ने मुझे गुमशुदा कर दिया
मैं दश्त-ए-तसव्वुर में मिला हाल-ए-इज़्तिराब में।

मुराद-ए-क़ुर्बत ही दिल की आख़िरी ख़्वाहिश थी
पर तक़दीर मेरी थी ऐसी तू मिली बस सराब में।

तोहमत-ए-इश्क़ फ़क़त एक तेरी ही जायदाद नहीं
मैं भी शायद कमज़ोर ही था इश्क़ के निसाब में।

जॉनी अहमद ‘क़ैस’

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