मैं हूँ पुरानी शराब सा।
मैं हूँ पुरानी शराब सा।
लोगो को मेरा नशा सिर पर चढ़ जाता है।।1।।
मैं कहता नही कुछ उसे।
फिर जाने क्यों उसको बुरा लग जाता है।।2।।
खुद में नहीं हूं कुछ भी।
पर मेरे दोस्तों को मेरा साथ भा जाता है।।3।।
मुस्तकबिल है बच्चे का।
पूत का पाँव पालने में ही दिख जाता है।।4।।
मैं हूँ खुदा की नात सा।
मुझे सुनकर बंदा खुदाई में खो जाता है।।5।।
जल्द आएगा तेरा वक्त।
सबको अज्र इसी जहाँ में मिल जाता है।।6।।
मत पियो इतनी शराब।
कितना भी हो जहर असर कर जाता है।।7।।
मैं हूँ अब एक शहर सा।
मुझमें हर किसी का पता मिल जाता है।।8।।
मैं हूँ यूँ सच्चे इश्क़ सा।
मुझसे हर किसी को ही यह हो जाता है।।9।।
बाजार में होता है सब।
सही दाम होने पर हर कुछ बिक जाता है।।10।।
मैं हूँ जानता सब कुछ।
काम होने पर हर कोई बदल सा जाता है।।11।।
मैं हूँ हकीम-ए-दवा सा।
मुझसे हर बीमार को शिफा मिल जाता है।।12।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ