” मैं हूँ और मेरी तन्हाई ” !!
मैं हूँ और मेरी तन्हाई !!
जीवन क्या आपा धापी है ,
खुद से भी ना मिल पाते हैं !
कुछ पाना है इसी दौड़ में ,
बस दौड़े दौड़े जाते हैं !
दूजों की पहचान करें क्या ,
सोचा औ आँखें भर आई !!
हाथ थाम कर साथ चले तो ,
कभी लगा यह मजबूरी है !
एक दूजे के मन में झांका ,
पाट सके ना हम दूरी हैं !
दुनिया से क्या लेना देना ,
करना है हमको भरपाई !!
एक ओर सागर की हलचल ,
तट पर गहराता सन्नाटा !
अंतरतम की गहराई से ,
यहाँ भला किसका है नाता !
छूना मुश्किल , देखें जी भर ,
गगन ले रहा है अँगड़ाई !!
भाव नहीं शब्दों में बंधते ,
कलम लगे रूठी रूठी है !
खुशियों को समेटना मुश्किल ,
कभी लगे झूँठी झूँठी है !
समय करे अठखेली ऐसी ,
विधना पर भी है बन आई !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )