मैं हिंदी हूँ
मैं हिन्दी हूँ, मै हिन्दी हूँ, हमें आगे जरा लाओ।
ऐ मेरे हिन्द के वासी, तुम ना हमसे शरमओं।
जो मै सो गई थी नीद में तो अब जगा लो तुम,
प्यारी सी थपक से मुझको, अब तो उठा लाओ।
पराए देश में अब भी वर्चस्व है अपना।
स्वदेश में देखूं मै अपनी मान का सपना।
पापा को कोई डैडी कहे, माँ को मॉम कहता है।
निजभाषा को वो भूलकर, चला रहे अपना।
एक वक्त था जब देश में मेरा बोलबाला था।
सूर, तुलसी, भारतेन्दु और वो ही निराला था।
देश बढ़ गया आगे, पर मैं रह गई पीछे।
वो वक्त था जब माँ की, ध्वनियों में उजाला था।
मैं भाषा हूँ वही, जिसने दीपक राग गाया था।
स्वरों की तान से हमने,दीपक को जलाया था।
वही मीरा थी जिसने प्रेम की माला फिरा करके,
मेरी भाषा में ही, उसने गिरधर को रिझाया था।
मैं भाषा हूँ वतन की, तुम मुझको जरा सुनो।
दूंगी तुम्हे हर चीज, तुम मुझको जरा चुनो।
जो हिन्दुस्तान के माथे की बिन्दी, मैं वो ही हिन्दी।
इसिलिए कह रहे अंजनी, तुम इसको भी कुछ गुनो।