” मैं हार नहीं मानूँगी ” !!
मैं हार नहीं मांनूगी !!
गिद्ध दृष्टि देखी है ,
बचपन से पचपन तक !
आँखें भेद रही हैं ,
अंदर तक , चिलमन तक !
ना हारी हूँ , हारूँगी ,
अब रार यहीं ठानूँगी !!
कुछ कच्ची सी कलियाँ ,
खिल ही ना पाई हैं !
शैतानी पंजों से ,
बच ही ना पाई हैं !
कुछ भूले , भटकों सी ,
मैं खाक नहीं छानूंगी !!
खुद को ढाला ऐसा ,
अगन नहीं , ज्वाला हूँ !
कभी हलाहल हूँ तो ,
कभी सुधा प्याला हूँ !
अबला ना , सबला हूँ ,
मैं शमसीरें तानूँगी !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )