मैं हाथ मिलाने का दस्तूर न हो जाऊं
ग़ज़ल
इतनी नवाज़िसों से मग़रूर-हो न जाऊं।
तेरे करम से मौला अब दूर हो न जाऊं।।
खंजर लिये फिरेंगे ये दोस्त मेरे अपने ।
मुझको यही है डर अब मशहूर हो न जाऊं।।
तस्वीर तुम करीने से मेरी तो बनाते ।
इतना ही रंग भरना बेनूर हो न जाऊं।।
क्यों इतनी मय पिलाता मुझको तू मेरे साकी।
तेरे ही मयकदे में अब चूर हो न जाऊं।।
शामिल किया खुशी में क्यों दूर हूँ मैं ग़म से।
मै हाथ बस मिलाऊं दस्तूर हो न जाऊं।।
इतना “अनीश”को भी मौला अता तू कर दे।
भूखे का पेट भर दू मजबूर हो न जाऊं।।