मैं हर चीज अच्छी बुरी लिख रहा हूॅं।
ग़ज़ल
122/122/122/122
मैं हर चीज अच्छी बुरी लिख रहा हूॅं।
कि जीवन में नेकी बदी लिख रहा हूॅं।1
जिन्हें ज्यादातर मैंने रोते ही देखा,
मैं मुश्किल से उनकी हॅंसी लिख रहा हूॅं।2
जो बेबस हैं रहने को फुटपाथ पर ही,
गरीबों की मैं बेबसी लिख रहा हूॅं।3
तुम्हीं तो बसे दिल में भगवान जैसे,
मैं दिल से तुम्हें बंदगी लिख रहा हूं।4
कहीं आग, बारिश है तूफान भीषण,
कि मुश्किल भरी जिंदगी लिख रहा हूॅं।5
है दुनियां के आसार बर्बादियों के,
कयामत सी मुझको दिखी लिख रहा हूॅं।6
मैं प्रेमी हूं है प्यार की तुमसे हसरत,
जो दिल में अभी तक दबी लिख रहा हूॅं।7
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी