मैं स्त्री हूँ
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मैं स्त्री हूँ।
मुझे पाकीज़गी से देखिये।
शयनकक्ष में पराजित औरत की तरह नहीं।
मुझे पवित्रता के साथ कीजिये नमन।
मैं हूँ लक्ष्मी,सरस्वती,दुर्गा की प्रतिनिधि नार।
हर युग में किया है मैंने ही बुराइयों का शमन।
हर परिवर्त्तन की पहेली में, मैं ही हूँ अवतार।
वस्तुनिष्ठ नहीं
मुझे सृजन की पराकाष्ठा से देखिये।
पुरुष के अहं में विसर्जित अबला की तरह नहीं।
सृष्टि की अविचलता,अव्यग्रता व अमर स्थायित्व मेरा।
सृजन मात्र नहीं,पालन और देव-संस्करण सा इसका विकाश।
तमिस्र का हरण और रश्मि के अवतरण का दायित्व मेरा।
हर बिम्ब मेरा आरोपण है कुछ नहीं अचानक या अनायास।
मैं स्त्री हूँ।
मुझे सम्मान,अहसान और प्रतिदान सा देखिये।
निर्वस्त्र,नग्न कर चाँदनी में लालसा क्यों है।
वह तुम्हारा शौर्य नहीं मेरे सौंदर्य की है अवहेलना।
ठिठुरते तन के क्रोध से मेरा मन रूदित यों है।
चाक्षुष-सुख और अधिकार के अहंकार से है वेदना।
मैं स्त्री हूँ।
मुझे पवित्र,शुद्ध व उत्तम निर्माल्यता से देखिये।
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