मैं सोना चाहता हूँ
मैं सोना चाहता हूं,
किसी की जुल्फों में
किसी की पलकों में
या बहते जामो में नही,
मेरी माँ,
मैं तेरी गोदी में
सिमटना चाहता हूँ..!
ये दौलत, ये शौहरत की दौड़
मुझसे नही होती ,
नही होती मुझसे ये
झूठ की साफगोई,
मुझे एक कौर दे दे रोटी का चबाने के लिए,
उसी से पेट भरकर मैं,
तेरे आँचल में खुश होना चाहता हूँ ..!
मैं तुझसे बहुत दूर रहा हूँ,
दुनिया की बढ़ती नफरतों से मैं,
टूटकर बिखर रहा हूँ,
हर रोज नई कहानियां गढ़ी जा रही है मेरी माँ,
इनमें उलझ कर मैं सोना भूल गया हूं,
तेरी छाया में,
मैं बेख़ौफ़ होना चाहता हूँ..!
अब ये हवा सुहानी नही है,
इसमें धूल बहुत ज्यादा है
फूलो के रंग भी चटक हो गए है,
इनमें दिखावा बहुत ज्यादा है,
दिन की भोर,शाम की गौधुली
की रंगत,
जुड़ गई है रहस्यों से,
नदी की कल-कल में भी अब संगीत नही,
प्रकृति पर गुलामी का असर गहरा है,
प्रकृति को छोड़कर मेरी माँ,
तेरी ममता के आगोस में
चिर नींद सोना चाहता हूँ…
मैं सोना चाहता हूँ…