मैं सोता हूँ तो ये आकर झिंझोड़ देता है
ग़ज़ल
मैं सोता हूँ तो ये आकर झिंझोड़ देता है।
तेरा ख़याल मेरा ख़्वाब तोड़ देता है
वो आज़माता है यूं जोर मुझपे अक्सर ही।
मिला के हाथ कलाई मरोड़ देता है।।
यूं चीरता है मेरे दिल को बेरुख़ी से वो।
कि जैसे दूध में नीबू निचोड़ देता है।।
मैं इक खिलौने की मानिंद हूँ अब उसके लिए।
वो तोड़ता है मुझे और जोड़ देता है।।
वो नाम मेरा मिटाता तो दिल से है लेकिन।
है नाम जिस पे वरक़ भी तो मोड़ देता है।।
वो खींच लेता है किरदार बीच में अपना ।
कहानी मेरी अधूरी ही छोड़ देता है।।
सज़ाए मौत वो करता है मेरी यूं एलान ।
“अनीस” नोक-ए-क़लम लिख के तोड़ देता है।।
– अनीस शाह “अनीस”