मैं सोता रहा……
“मैं सोता रहा…..
कभी सपनों में ,कभी अपनों में,
कभी यादों में , मैं खोता रहा।
कभी उम्मीदों में , कभी फरियादों में ,
कभी बातों में ,मैं उलझता रहा ।
कभी अश्कों में, कभी अक्शों में ,
कभी रश्कों में, मैं बहता रहा ।
कभी सवालों में ,कभी किस्मत के तारों में,
कभी विष के प्याले में , मैं मिटता रहा।
कभी चिंता में , कभी चिंतन में ,
कभी नियति नटी के नर्तन में , मैं विकलता रहा।
कभी तृष्णा में , कभी तानों में ,
कभी मान और अपमानो में, मैं चित्त अपना खोता रहा।
मैं सोता रहा……..”
“अब इस गहरी नींद से ,जाग रहा हूं मैं।
कभी खुद से भागता था, अब खुद के पास आ रहा हूं मैं ।
कभी खुशियों के पीछे भागता था ,अब हर पल में खुशियां भाप रहा हूं मैं।
जीवन जीना कहीं भूल सा गया था, अब फिर से जीना सीख रहा हूं मैं।
कर्म पथ पर चलते हुए…… किस्मत का लिखा बुरा भाग्य ,अब काट रहा हूं मैं.
प्रण को प्राण बनाकर , फिर से जाग रहा हूं मैं ।
फिर से जाग रहा हूं मैं……..”