मैं सावन का मेघ बनूँगा
मौसम से रूठे बादल को फिर से नहीं बुलाऊंगा ,
मैं सावन का मेघ बनूंगा और तुझे नहलाऊँगा .
साँसों में पुरवाई बहती आहों में शीतलता है
नेह के नर्म बिछौना बैठी काया की कोमलता है ,
मुखड़े की आभा लेकर मैं रातों को चमकाऊँगा .
मैं सावन का मेघ ……..
नरम घास की चादर से ,अच्छे एहसास के मखमल हैं
तेरे हुश्न की खुशबू से ,जीवन में यौवन पल पल है ,
प्रेमचंद का मैं होरी और धनियाँ तुझे बनाऊँगा
मैं सावन का मेघ ………..
बोलो शकुन्तला तुम अपनी मुंदरी कहाँ भुला आई
दमयंती बोलो किस किस को अपनी व्यथा सुना आई ,
कुछ भी नहीं अछूता कवि की नजरों से बतलाऊँगा
मैं सावन का मेघ ……….
कन्धों तक जो जुल्फ घनेरी बादल से क्या कम लगते
इन्द्रधनुषी आंचल नभ पर क्षितिज में सुन्दरतम लगते ,
स्वप्नलोक की परी हो तुम हृदयासन पर बैठाऊंगा .
मैं सावन का मेघ …….
तुमसे अगर जुदाई होगी दर्द कहाँ सह पाऊँगा
भाओं के मंडप में मैं तनहा कैसे रह पाऊंगा ,
मेघदूत की रचना क्र मैं कालिदास बन जाऊँगा .
मैं सावन का मेघ …….
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