मैं सत्य हूँ !
मैं सत्य हूँ ,
झूठ के प्रहार से क्षत विक्षत l
हूँ अडिग ,
सहकर कई प्रहार अनवरत l
झूठ ने मुझे ,
कई – कई बार झिंझोड़ा है l
दबा कर,
निम्बुओं की तरह निचोड़ा है l
मेरा पैर भी ,
कई कई बार डगमगाया है l
कई बार तो ,
जुगनुओं ने भी आजमाया है
हर बार ,
गिरा और उठ कर खड़ा हुआ l
हर बार ,
मेरा हौंसला और बड़ा हुआ l
झंझावातो ने ,
मुझे बहुत हिलाया डुलाया l
हर बार ,
मैंने आँधियो को समझाया l
पल भर भी ,
इनके साथ में रहना बेकार है l
झूठ झूठ है ,
झूठ ही तो इनका करोबार है l
लड़ने का ,
अब थोड़ा थोड़ा असर हो रहा है l
मैयत झूठ की ,
और सच अजर अमर हो रहा है l