मैं शर्मिंदा हूं
इतना ढ़ोंग
गायों को भी
जिसमें माता
कहके
बुलाते हैं!
इतना पाखंड
इंसान नहीं
पत्थर ही
पूजे
जाते हैं
इस धर्म में
मैंने जनम लिया
यह सोचकर
मैं शर्मिंदा हूं!
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
घुट-घुटकर
आख़िर
किसलिए ज़िंदा हूं!
A Parody By
Shekhar Chandra Mitra