मैं विद्रोही तेवर का
मैं विद्रोही तेवर का-
विद्रोह लिखता हूँ गढ़ता हूँ
असत्य को सत्य की कसौटी से इतर मानता हूँ
भर मन में विषाद, प्रेम ना लिख पाता हूँ
प्रेम कविता लिखूं तो लिखूं कैसे
कैसे करें जज्बातों को बयाँ?
कैसे रोकें भावनाओ के आवेग को
बना प्रेम के तटबंधों को
प्रचंड आवेग भावों के समक्ष
भला कंहा टिक पाया ये प्रेम निष्कंटक
मैं विद्रोही तेवर का-
विद्रोह लिखता हूँ गढ़ता हूँ
जो भरा है मन में, वो उमड़ आता है कलम में
वो छलक आता है शब्दो में जो नजर आता चेहरे पे
भाव ना छिपा पाता ना बदल पाता भंगिमा
हमारे हृदय में जो कुछ है,
या अनुपस्थित है उसे आकार दूं.
उतार दूं कागज़ पर,
दूरियों और नजदीकियों के नक़्शे,
बस अब स्पष्ट कर दूं
फेंक कर कागज़ कलम
थाम लूँ हाथों में तलवार
या लेखनी को धार दूं
मैं विद्रोही तेवर का-
विद्रोह लिखता हूँ गढ़ता हूँ
हृदय में भाव प्रचंड है उफनते जज्बें है
कुछ कर गुजरने के हौसले है
ये धुंध ये धुंआ ये मजमा
इनकी हैसियत क्या है
भावों के तूफानी वेग
में बह जाएगा सब
प्रेम-मोहब्बत
नफरत-घृणा
सब मतलब सबकुछ
बचेंगे सिर्फ तो सिर्फ
अवशेष!
रिश्तों के संबंधो के
पुनः सींचना कठिन होगा
जोड़ना नामुनकिन होगा
स्थितियां प्रतिकूल होगा
युद्ध भूल होगा
पर, प्रकृति और तेवर से मजबूर हैं
मैं विद्रोही तेवर का-
विद्रोह लिखता हूँ गढ़ता हूँ
कुछ शब्द, कुछ पंक्तियां, कुछ पृष्ठ
उपमाएं, अलंकार और रूपक
भावों की व्यवहारों की होती प्रतिबिम्ब
नैतिकता वर्जनाओं की उपलब्ध सीमित बिम्ब
कर सीमन परिसीमन और तटबंधों का घेराव
भावों के प्रवाह भला कंहा कोई रोक पाया है
मैं विद्रोही तेवर का-
विद्रोह लिखता हूँ गढ़ता हूँ