मैं वट हूँ
मैं गमले में उगा बोनसाई का पेड़ नही
जिसे तुम काटो छाँटो औनापौना
और कर दो पूरा अस्तित्व बौना
बौनी ख्वाहिशें बौने ख़्वाब
बौना ज़िंदगी का हर हिसाब
मैं तो धरा चीर निकला वट हूँ
विशाल विस्तृत अटल अचल
सदाबहार दूँ छाया श्यामल
योगी मलंग ज्यूँ जटाधारी शंकर
भू पर पसरा जितना उतना ही अंदर
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया