मैं रावण हूँ…..
खुद से धोखा पाने को,
रावण को आग लगाने को,
कुछ लोग इकट्ठा हो गये थे,
दिल को सब्र दिलाने को।
अब रावण जल जाएगा,
दानव भष्म हो जाएगा,
बुराई पर अच्छाई का,
असत्य पर सत्य का,
पाप पर पुण्य का,
अत्याचार पर सदाचार का,
अज्ञान पर ज्ञान का,
आज विजय हो जाएगा,
बस मानव ही रह जाएगा।
सहसा एक आवाज हुआ,
रावण का अट्हास हुआ,
हंस-हंस कर रावण बोला,
सब का तन-मन डर से डोला।
मुझमें आग लगाने का,
एक छोटा सा शर्त है,
वहीं आग लगाएगा,
जो राम सा मर्द है,
अगर ये शर्त है मंजूर,
हमें बता देना जरूर।
सब एक दुजे को देख रहे थे,
सब एक दुजे से पुछ रहे थे,
कौन है जो कुकर्म न किया है,
कौन है जो अधर्म न किया है,
हैं यहां कोई ऐसा मर्द,
जो पूर्ण करे रावण का शर्त?
व्यंग्य से रावण फिर बोला,
तन-मन सबका फिर डोला,
मत करो विलंब,
आग लगाओ अविलंब,
था भिड़ सब सन्न,
नहीं था कोई प्रसन्न,
रावण बोलता रहा,
भ्रम तोड़ता रहा।
हाँ मैं वो ही रावण हूँ,
जो सीता को हर लाया था,
अपशब्द के बाण को,
कभी नहीं बरसाया था,
उतम अशोक वाटिका में,
सुरक्षित उन्हें रखा था,
गलत छूना भी तो क्या,
गलत नजर भी न रखा था।
लेकिन तुम सब के यहाँ,
देवियों को पूजा जाता है,
मौका खोज हर रोज,
बेटियों को नोचा जता है।
कुछ भी ऐसा नहीं हुआ था नाम का,
समय था वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का।
यदि मुझको जलाना चाहते हो,
तो अपने भ्रष्ट विचारों को जलाओ,
मैं खुद से ही जल जाउंगा,
तुम राम सा बनकर दिखलाओ।
कुंदन सिंह बिहारी(मा०शिक्षक)
(उत्क्र०मा०वि०अकाशी,सासाराम,रोहतास)
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