मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
हर कहानी खुद मंजर नही कहता
जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो
घाव कितना देगा खंजर नही कहता
आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे
कितना गहरा है समंदर नही कहता
मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा
अब हार गया है सिकंदर नही कहता