मैं मेहनत हूँ
सूरज की किरणों के संग-संग
मेहनत दौड़ी – दौड़ी आई।
बोली अब तुम सब उठ जाओ,
लग जाओ मुझे अपनाने में ।
जीवन का डगर बहुत कठिन हैं,
मैं आई हूँ यह बताने।
जोश भरो अपने अंदर
लग जाओ सपने सजाने।
चढना तुम्हें पहाड़ हैं
तो चलना तुम्हें पड़ेगा।
मंजिल तुम्हारा दूर हैं,
तुम्हें दोड़ना भी पड़ेगा।
छुना है अगर आसमान तुम्हें,
उड़ना भी तुम्हें पड़ेगा।
पार करनी हैं नदी तो
तैड़ना भी तुम्हें पड़ेगा।
मंज़िल अगर पाना हैं तुम्हें
हर बाधा को दूर करना पड़ेगा।
मैं मेहनत हूँ!
मुझको तो तुम्हें हासिल करना पड़ेगा।
मैं मेहनत हूँ!
मैं आई हूँ तुमको मंजिल तक पहुँचाने ।
मुझको तुम अपनाकर देखो ।
मैं निराश तुमको नहीं करूंगी।
कठिनाईयाँ बहुत आती हैं,
मेरी हर राहों पर ।
उन कठिनाईयों से तुमको ,
लड़ना तो पड़ेगा।
मैं मेहनत हूँ!
मैं अपने जीवन में
किसी से भेद भाव नहीं करती हूँ ।
मुझको तुम जहाँ अपना लो
मैं वही की हो जाती हूँ।
चाहे महल कि हो दीवार
चाहे झोपड़ी वाला हो संसार
मैं मेहनत हूँ हर जगह
तुमको दिख जाती हूँ।
मैं मेहनत हूँ!
मुझको तुम जितना अपनाओगे
उतना ही जीवन में तुम
ऊपर को जाओगे।
मैं मेहनत हूँ!
कभी किसी को भूखा सोने नहीं देती हूँ।
मुझको तुम अपनाकर देखो
मंज़िल कितनी सुंदर देती हूँ।
मैं मेहनत हूँ!
कभी किसी को धोका
मै नही देती हूँ।
आज नहीं तो कल मंजिल पर
निश्चय ही लेकर जाती हूँ।
~अनामिका