मैं मासूम “परिंदा” हूँ..!!
जाने कबसे लटका हूँ,
फांसी का इक फंदा हूँ।
देख रहे वो नब्ज़ मेरी,
ज़िन्दा हूँ या मुर्दा हूँ।
हर चहरे पर पर्दा है,
पर सबको पढ़ लेता हूँ।
माँ मेरी तू ज़न्नत है,
मैं बस तेरा साया हूँ।
लेकर तेरी साथ दुआ,
घर से बाहर जाता हूँ।
बचकर ऐसे चलते हो,
ज्यों राहों का काँटा हूँ।
कहने को सब अपने पर,
जाने कब से तन्हा हूँ।
बीते पल ग़र याद करूँ,
खूं के आंसू रोता हूँ।
अब मत जाल बिछाओ तुम,
मैं मासूम “परिंदा” हूँ।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊