√√मैं मटकी – भर राख (भक्ति-गीत)
मैं मटकी – भर राख (भक्ति-गीत)
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यही हैसियत है बस मेरी ,मैं मटकी – भर राख
(1)
इतराता मैं रहा रूप पर ,जो मिट्टी का ढेला
धन – संपत्ति जुटाई जितनी सब दो दिन का मेला
लेटा हूँ अर्थी पर अब कब ,पद – पदवी की साख
यही हैसियत है बस मेरी ,मैं .मटकी. भर राख
(2)
मौसम जैसी आनी – जानी , मेरी राम कहानी
कभी शिखर चढ़ता सीढ़ी से ,फिर थी मुँह की खानी
कीमत एक रुपै की .मानूँ , या फिर पूरे लाख
यही हैसियत है बस मेरी , मैं मटकी भर राख
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर ,(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451