मैं मजदूर हूँ
कर्तव्य पथ पर हूं अडिग,
सब खुशियों से दूर हूं।
गृहस्थी की गाडी खींचता,
नियति से मजबूर हूं।
हां मै एक मजदूर हूं।
कर के वादा बेटे से,
खिलौना तुझको दिलाऊंगा,
तोड़ देता हर शाम को।
झूठ से देता उस को खुशी,
चलाता यही दस्तूर हूं।
रोटी सही से जुटती नही,
क्या करूं मजबूर हूं।
हां मै एक मजदूर हूं।
बनाता हूं रोज महल,
झोपड़ी है आशियां मेरा।
ऊंचाइयों पे चढ़ के,
ऊंचाईयों को पाता नही।
पर मैं बेकसूर हूं।
हां मै एक मजदूर हूं।
कभी कभी लाचारियों में,
चूल्हा घर में जलता नहीं ।
पथिक कांटों की राह का,
ज़िंदगी में बेनूर हूं।
हां मै एक मजदूर हूं।
कमियां मेरी ज़िंदगी की,
क्या करोगे जानकर,
खुशी लुटाता महल बना,
खुशियों से बहुत दूर हूं।
आखिर मै मजदूर हूं।
स्वरचित एवम मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश