मैं मजदूर हूँ ।
दुःख दर्द, सितम से भरपूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ ।
बंजर जमीं पर फसलें उगाता,
लाचारी अपनी किसे सुनाता ,
हर क़ायदा हर उसूल निभाता।
नये नये महसूल चुकाता।
अब नीतियां , आडंबर लगने लगी है।
बरसों से, सोयी आंखे जगने लगी है।
उम्मीदों के खलिहानों में एक अकेला शूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।
क़सीदे पढ़े वजीरों ने झूठे या दबा दी गयी आवाज हूक की ,
छाले पड़े हो पैरों में या ज्वाला भभकी हो भूख की ।
कुम्हलाता चेहरा हो या लट बिखरे हो रूप की ।
तर-बतर हो पसीने में या किस्मत चमकी हो धूप की।
प्रकृति के दंश में,
मीलों लंबी सड़कों को तय करने मजबूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ , मैं मजदूर हूँ।
मतभेद चुनूँ या मतदान करूँ।
सफेद पोशाकों पर क्या अभिमान करूँ।
ये पाखंड नये – नये गढ़ते है।
कभी कुरान कभी गीता ये पढ़ते हैं।
मजहबी राजनीति की चक्की में हरदम पिसता जरूर हूँ ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।
शिक्षा – दीक्षा के पैमाने,
सिर्फ होते है हमे अपनाने,
तानाशाही , नौकरशाही,
अरमानों को करते धाराशाही।
सामाजिक बुनियाद हूँ ,
गरीबी का उन्माद हूँ।
रोते बिलखते इंसानों में नूर हूँ ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।
अमीरों का कोप हूँ।
जमीदारों का रोप हूँ।
शूल – उसूल बने मेरे लिये,
कंकण पत्थर धूल बने मेरे लिये,
दीनता का मिसाल हूँ।
हीनता का मशाल हूँ।
आबाद रहे अमीरों की बस्ती, शहर न बन सका गांव कभी ,
न आसरा बन सका परिवार का , न दे सका छाँव कभी।
अमीरों के लिए बरगद मैं ,
अपनों के लिए खजूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।
चलो नये आयाम गढ़े,
उठो चलो आगे बढ़े,
मैं देश की आन हूँ ।
देश का स्वाभिमान हूँ ।
मैं कुबेर हूँ, मैं विश्वकर्मा हूँ।
मैं अर्थ हूँ, मैं कर्मा हूँ ।
सदा रहे सुहागन वतन मेरा,
सदा न्यौछावर इसको तन मेरा,
मैं भारत माँ का सिंदूर हूँ ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ ।।
दुःख दर्द सितम से भरपूर हूँ।
मैं मजदूर हूँ, मैं मजदूर हूँ।।
✍✍ देवेन्द्र