मैं भी काम करूंगी ____ कहानी
क्या जमाना आ गया है। जिधर देखो उधर समस्याएं ही समस्याएं दिखाई देती है। काम मिलता नहीं बाजार में जाओ तो महंगाई आखिर कैसे अपने घर को चलाऊं।
कुछ इसी प्रकार की चर्चा राम दरस अपनी झोपड़ी में बैठकर अपनी पत्नी गायत्री को सुना रहे थे। पति-पत्नी की इस चर्चा को उनकी बेटी करुणा बड़े गौर से सुन रही थी।
कुछ देर बाद राम दरस घर से निकल गए। गायत्री अपने काम में लग गई। बेटी करुणा उठी और मां से जाकर कहने लगी _ मां मेरे मन में एक बात आई है।
गायत्री_ बताओ बेटा क्या बात है।
करुणा _मां मैं अपनी पढ़ाई को छोड़ना चाहती हूं।
गायत्री__ क्यों बेटा ऐसी बात क्यों कर रही हो।
करुणा_ इसलिए मां आखिर में पढ़ भी लूंगी तो उससे मुझे मिलेगा क्या।
गायत्री_बेटा पढ़ाई ही तो जीवन को सजाता संवारता है। देख नहीं रही हो तुम हम नहीं पड़े तो हमें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है ।मेरी बेटी तुझे पढ़ कर के बहुत कुछ करना है।
करुणा__ नहीं मां अब मैं आगे की पढ़ाई नहीं करूंगी वैसे भी मैंने बारहवीं तक की पढ़ाई कर ली है।
अब चाहती हूं कि मैं भी कोई काम करूं।
गायत्री_ बेटा इतनी सी ही पढ़ाई से कहां कोई काम मिल जाएगा।
करुणा__कुछ ना कुछ काम तो मुझे मिल ही जाएगा मां।
गायत्री_देख मैं तो यही चाहती हूं कि तू और पढ़ बाकी अभी तेरे बाबूजी आएं तब उनसे ही तू चर्चा करना कि वह क्या चाहते हैं।
कुछ देर बाद रामनरेश का घर में प्रवेश होता है।
अरे बेटा करुणा_ जरा पानी पिलाना बेटा।
लाई बाबा__
पिता की बात सुनकर करुणा उनके लिए पानी ले आई।
आज कुछ उदास लग रही हो बेटा।
नहीं नहीं पापा_ ऐसी कोई बात नहीं है।
अपने पापा से जरूर कुछ छुपा रही हो बेटा।
ऐसी तो कोई बात नहीं है बाबू जी परंतु फिर भी मैं आपसे एक प्रश्न करना चाहती हूं आपकी आज्ञा हो तो कहूं।
मुस्कुराते हुए रामनरेश ने कहा हां हां कहो क्या बात है।
बाबूजी मुझे अब मुझे आगे नहीं पढ़ना है।
मैं कोई काम करना चाहती हूं।
यह कैसी बात कर रही बेटा।
अभी तेरी पढ़ाई ही कहां पूरी हुई है।
तुझे बहुत कुछ पढ़ना है बहुत कुछ पाना है।
वह तो ठीक है बाबू जी, परंतु मै पढ़ाई के अलावा भी बहुत कुछ प्राप्त कर सकती हूं।
मेरा मन करता है कि मैं कहीं ना कहीं काम करूं।
देखो बेटी_ मैं नहीं चाहूंगा कि मेरी बेटी मेरे रहते हुए कहीं काम करें, और लोग _ लोग मुझे ताने मारे.।
हमें लोगों से क्या लेना वैसे भी क्या कोई लोग आकर के हमें घर में खाना देते हैं।
तुम नहीं जानती बेटी, समाज में लड़कियों के बारे में लोग किस किस तरह की बातें करते हैं।
मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी के बारे में कोई ऐसी वैसी बातें करें कि देखो बाप ने अपनी बेटी को ही अपने स्वार्थ के पीछे पढ़ाई रुकवा कर के काम पर लगा दिया।
कहने दो बाबू, कहने वाले कहते रहेंगे मैं तो कल से काम की तलाश में निकल लूंगी, और निश्चित ही कोई काम करूंगी।
ठीक है बेटा अगर तुम्हारी यही इच्छा है तुम्हारी मां से तो पूछ लेती।
पूछ लिया बाबू मां ने तो आपसे ही पूछने की कहा है कि तेरे बाबूजी जैसा कहें वैसा कर लेना।
जब मां और पिता दोनों की सहमति बन गई तो, करुणा की तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई। वह अगले दिन काम की तलाश में शहर में निकल गई।
चार छ जगह उसने अपनी पसंद के काम को तलाशा और अंत में _एक कपड़ा मिल के मैनेजर से जाकर अपने काम की जिज्ञासा प्रकट की।
मिल मैनेजर सुरेश भले किस्म के प्राणी थे ,उन्होंने करुणा की गुजारिश को स्वीकार कर लिया और अपने ऑफिस में उन्हें लिखा पढ़ी का काम सौंप दिया।
करुणा की तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई,
करुणा अपने ऑफिस के काम को ठीक उसी प्रकार से संभालने लगी जैसे वह आफिस नहीं स्वयं का घर हो।
देखते ही देखते उसकी कार्य पद्धति से वह दुकान ऐसी चलने लगी कि शहर की प्रतिष्ठित दुकानों में से एक बन गई।
दुकान मालिक सुरेश ने करुणा की इस मेहनत लगन को भांपकर अपने स्थान पर उसे उसका मैनेजर नियुक्त कर दिया ।
इधर गायत्री और रामनरेश भी अपनी बेटी के इस कार्य से प्रसन्न थे।
कुछ ही दिनों बाद करुणा की पहचान ,करुणा का नाम शहर के कोने कोने में प्रसिद्ध हो गया ।और अब करुणा के पास अच्छे-अच्छे कारखानों से अच्छे-अच्छे ऑफिसों से कार्य करने के प्रस्ताव आने लगे।
परंतु करुणा ने उस ऑफिस और उसके मालिक सुरेश का साथ नहीं छोड़ा और एक दिन पूरे शहर में उस दुकान को एक नंबर की स्थिति पर ला खड़ा कर दिया।
यह मेहनत का ही परिणाम था कि गरीबी में अपना जीवन यापन करने वाला रामनरेश धीरे-धीरे अपनी आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ने लगा। आज उसे फक्र था कि मेरी बेटी ने अपने कर्म के बल पर ,अपनी मेहनत के बल पर मेरे घर की दशा बदल दी है।
करुणा भी प्रसन्न रहने लगी और उसे उसकी मेहनत का लगातार फल मिलता रहा।
मेहनत कहां व्यर्थ जाती है परिश्रम कभी असफल नहीं होता है।
धीरे-धीरे करुणा ने स्वयं का एक बंगला खरीद लिया और अपने माता-पिता को बड़े प्रेम से उसी बंगले में रखने लगी।
रामनरेश एक दिन अपनी पत्नी से कहने लगे गायत्री हम कितना सोचते थे- कि हमारे बेटा नहीं हैं, क्या होगा देखो न हमारी बेटी करुणा ने हमें कहां से कहां पहुंचा दिया।
वास्तव में बेटा हो या बेटी अगर संस्कार सही है तो किसी भी परिवार का विकास हो सकता है।
आज हमारी बेटी ने जो काम किया है बहुत ही अच्छा काम किया है।
रामनरेश का पूरा परिवार सुख शांति से जीवन यापन करने लगा ।
एक दिन मां ने कहा बेटा क्यों ना तेरा विवाह कर दिया जाए।
जैसा आप चाहें, रामनरेश गायत्री ने एक अच्छे से परिवार में करुणा का विवाह कर दिया।
इसे भाग्य कहिए या समय, रामनरेश को दामाद भी ऐसा मिला जो दिन रात अपने सास ससुर की सेवा बेटे की तरह करता रहा।
इस प्रकार से दोनों परिवार प्रसन्न रहने लगे।
**कहानी के पात्र एवं संपूर्ण घटनाक्रम काल्पनिक है**
राजेश व्यास अनुनय