“मैं भारत हूँ ।”
उबल रही ज्वाला उर में
तुम शांति इसे ना मानो
अनुयायी मैं तथागत का
मुझको कायर ना जानो
भू को निर्जन वन कर दूँ।
मैं वो आँधी सघन हूँ ।
हिमखंड को जल कर दूँ।
मैं वो वडवानल हूँ ।
नापु नभ,नग; पगतल से
मैं चतुर्भुज वामन हूँ ।
धनन्जय का गांधीव हूँ।
पुरुषोत्तम की मर्यादा हूँ ।
कुरुक्षेत्र का शोणित हूँ ।
पांचाली अग्निबाला हूँ ।
है कीर्ति मेरी सनातनी
संतानों को बतलाता हूँ ।
जग कल्याण का लक्ष्य लिए
कर्मो के दीप जलाता हूँ ।
गँगा ,गायत्री, गीता हूँ ।
तुलसी ,सावित्री सीता हूँ।
देवत्व चाहता जन्म जहाँ
जननी वो ,मुक्तिदाता हूँ।
वसुधा की भाग्य विधाता हूँ।
माता मैं ;भारत माता हूँ ।
धर्म विजय का तुर्य हूँ मैं,
मृत्यु लोक का सूर्य हूँ मैं।
ऋषि वचनों का उदगारक हूँ।
मैं शाश्वत हूँ ; मैं भारत हूँ ।
S.K. soni
#अग्निवृष्टि ?
13-7-2017