मैं बड़ा या..?
मैं बड़ा या….?
कितना बड़ा है, यह कथानक
और यह जिंदगी, कितनी छोटी…
अभी किरदार गढ़े कहां हैं
अभी सरकार, सुने कहां हैं
अभी तो तलाश अमृत की
अभी करतार रचे कहां हैं
अभी तो अपने में ही खोया हूं
अभी तो सपनों में ही सोया हूं
नेपथ्य से गूंज रहीं हैं आवाजें
अभिनय अनुभव सब रोया हूं।।
न जाने कितने चरित्र बुने
पर मैंने स्वयं को मारा है
अध्याय सब बार-बार सुने
मंत्रों से मन क्यों हारा है।।
किरदारों से है लघु कथानक
पग-पग पसरे हैं महानायक
कोई ऐसा भी चित्र दिखा दो
हो राम सा, कृष्ण जननायक।।
सूर्यकांत