मैं बेटी हूँ
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मैं बेटी हूँ…..
मैं गुड़िया मिट्टी की हूँ।
खामोश सदा मैं रहती हूँ।
मैं बेटी हूँ…..
मैं धरती माँ की बेटी हूँ।
निःश्वास साँस मैं ढोती हूँ।
मैं बेटी हूँ…….
अपमान की घूँट मैं पीती हूँ।
थोड़ी प्यार-दुलार की भूखी हूँ।
मैं बेटी हूँ……..
मैं कोमल फूलों सी हूँ।
मैं मूरत ममता की हूँ।
मैं बेटी हूँ……
हँस-हँस के सब सहती हूँ।
हर पल काँटों पर लेटी हूँ।
मैं बेटी हूँ……
मैं हर लड़ाई जीत के आती हूँ।
फिर भी बोझ मैं मानी जाती हूँ।
मैं बेटी हूँ……
परम्पराओं की बोझ मैं ढोती हूँ।
दहेज की आग में झोंकी जाती हूँ।
मैं बेटी हूँ…
घर की करती पहरेदारी हूँ।
बिन गलती मैं अपराधी हूँ।
मैं बेटी हूँ….
मैं समाज में अब भी उपेक्षित हूँ।
माँ की कोख में मारी जाती हूँ।
मैं बेटी हूँ…..
मैं जमाने की जंजीरों से जकड़ी हूँ।
फिर भी बेटों से आगे बढ़ जाती हूँ।
मैं बेटी हूँ….
मैं घर को स्वर्ग बनाती हूँ।
दो कुल का लाज ढोती हूँ।
मैं बेटी हूँ…..
जिस घर में पलती बढ़ती हूँ।
उस घर में धन परायी होती हूँ
मैं बेटी हूँ….
मैं पिता के सर की पगड़ी हूँ।
माँ के आँखों की मोती हूँ।
मैं बेटी हूँ…
मैं खुद को पल-पल मिटाती हूँ।
बस प्यार हृदय में रखती हूँ।
मैं बेटी हूँ….
मैं सिर्फ नवरात्रि में पूजी जाती हूँ।
बाकी दिन अपमान की घूँट पीती हूँ।
मैं बेटी हूँ….
मैं लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, काली हूँ।
फिर भी पल-पल अग्निपरीक्षा देती हूँ।
मैं बेटी हूँ…
मैं आदि शक्ति,जननी-जन्मदात्री हूँ।
फिर भी मैं समाज में शोषित हूँ।
मैं बेटी हूँ….
मैं हर एक पल संघर्ष करती हूँ।
फिर भी अपना हक नहीं पाती हूँ।
मैं बेटी हूँ…..
????—लक्ष्मी सिंह