*मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है*
मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है
मुझको ही तो मरना है,
मुझको ही तो दुख सहना है
जन्म हुआ है इसी लिए मेरा ।
दूसरों के इल्जाम भी खुद पर लेना है
मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है ।
घर आंगन शहर है साफ सुथरा
दिल में इंसानों के अब मेल है ।
घर में भी मैं नहीं सुरक्षित
और इस मैं दोष भी मेरा है ।
मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है
पढ़ने की आजादी है और पढ़े लिखो की सोच पुरानी है ।
कुछ भी उल्टा काम हुआ
लड़की की गलती सारी है ।
सोचे ना विचार करें, तुम कमरे में बैठे सारा अनुमान लगा बैठे ।
क्या हुआ मेरे साथ और कैसे हुआ तुम इसका मान लगा बैठे ।
लड़की थी मैं ,मैंने ही तो किया होगा कुछ गलत यह बात आपको आती है ।
मेरे विचारों को दबाने की राजनीति आप को आती हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे सड़कों पे लगाते हो ।
पर एक बेटी की इज्जत तुम ना कर पाते हो ।
यह सब सुनना और देख रोना और चुपचाप सहते रहना है ।
मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है ।
सहते सहते उम्र कट गई ,सहते सहते मरना है राम कभी कहां जला ,जलना तो सीता को पड़ता है ।
रो भी नहीं सकती किसी के सामने, आंसुओं का फायदा सियार यहां उठा लेंगे ।
कलंकित करके, समाज को दोष मेरा बतला देंगे।
घुट घुट जीना ,पर्दों में रहना ,यही समाज का कहना है।
मैं बेटी दुख ही मेरा गहना है ।
मैं भी किसको बोल रही हूं
यह मुर्दों का जमाना है ।
जमीर बिक गए इनके
इनको तो नोटों की सुनना आता है ।
एक और मर गई आज फिर बेटी
इनको तो मजाक बनाना आता है ।
मेरी जैसी बेटी को, इंसाफ कहां मिल पाता है। आज मैं मरी हूं , कल यह खबर तुम्हारे घर से भी आएगी ।
भूल जाओ मुझको तुम आज
कल तुम्हारी बेटी की मौत, तुम को जगा देगी ।
#justiseformanishavalmiki
#justisefornirbhya
We need #justise
हर्ष मालवीय
बी कॉम कंप्यूटर तृतीय वर्ष
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल