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16 May 2023 · 1 min read

मैं बेगानों में पलता हूं

आजकल…
अपनों ने साथ चलना,
छोड़ दिया है।
बेचारे कब तक साथ चलते?

जीवन के ऊबड़-खाबड़,
रस्तों में….
साथ चलने वाले…
सभी…
अपने तो नहीं होते।

सफ़र के हर साथी में,
जो कि बेगाना होता है,
अपनेपन का..
अहसास सा होने लगा है।
और..
कई बार तो यूं लगता है,
कि…
ये बेगाने, धीरे-धीरे,
अपने बन रहे हैं।

मगर…
किसी ‘अपने’ की याद,
मन के किसी कोने में,
जो शायद….
अभी तक दबी है,
चिन्गारी की तरह….
दिल को जला देती है,
और फिर अहसास हो जाता है,
कि नहीं…
मैं, बेगानों में पलता हूं।

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