मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-8
मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-8
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
बचपन से से मुझको भरमाया मर्द हो तो दर्द नहीं होता…
सुन सुन के दिल मैं बैठ गया टूटे दिल मगर नही रोता…
अंतर से रिक्त टूटकर भी बाहर निश्चिंत मग्न दिखता…
जब कहते दंभी भाव शून्य मेरा दुखता घाव और रिसता…
तुमको दिखता हँसता गाता ना दिखता कितना बेवश हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…