मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-7
मैं पुरुष रूप में वरगद हूं..पार्ट-6
भीतर से हूं निरा खोखला, बाहर दिखता गदगद हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
जब वज्र चाहिए बन दधीचि मैं देह दान कर सकता हूं..
स्वप्न वचन हित हरिश्चंद सर्वश्व त्याग तक करता हूं..
है राष्ट्र देव और मैं सेवक जब पड़ी जरूरत सिद्ध किया..
जब पाषाणो प्राचीरों में जीवित प्यारों को विद्ध किया.…
राष्ट्र, धर्म मर्यादा के हित सज्ज कांध पर तरकश हूँ…
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूं…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…