मैं पढ़ता हूं
मैं पढ़ता हूं
अखबार,खबर,पत्रिका,संदेश
विदेशी,देशी,स्थायी,भावावेश।
कुछ कोर्स भी, सोर्स भी, बोफोर्स भी
व्यक्तिगत,समष्टिगत,परीक्षा अनुदेश।।
मैं पढ़ता नहीं हूं
व्यवहार,बहार,हार, लाचार
खुद का,खुशी का ,दुःखी की,संसार।।
बढ़ रही,बढ़ चुकी,प्रखरतया अनुपचारी।
महामारी,बीमारी, मतिमारी,दुराचारी।।
फलतः धोखा-फरेबी और बातून करेली।
मीठा बोल ,घोल मधुरस,बनी नई हवेली।।
कुछ वेदनीय पिघला शीशा-सा ।
घुल रहा, मिल रहा,पयसि पयस्-सा।
सहज ही,मानवता से, अविभाज्य अंश बन हंस को भी।।
मैं सूंघता नहीं हूं
झोपडी – परिधि की कूड़ा-गंदगी,
भूला देता हूं नाली की गंध भी, सिगरेट के छल्ले बना सभी।
मुझे परख है सफाई की , इत्र से खुुशनुमां रखता हूं बदन,
वतन और पर तन को दुत्कारता हूं, अपने फुत्कारते नथूनों से।क्योंकि मैं सूंघता नहीं हूं।।
मैं देखता नहीं हूं
बेईमानी,मनमानी,नादानी,कारस्तानी।
आंखें इशारे से समझती हैं,समझाती है भविष्यत् इष्यत् को।
पर पट्टी बंधी है, नजदीक से चश्मदीद-सा तसदीक नहीं करता हूं,
मैं पढ़ता नहीं ,
देखता नहीं,
सुनता नहीं क्योंकि मैं पढ़ने को बना नहीं हूं,
बढ़ने को पढ़ रहा हूं।।