“मैं निभाता रहा”
वो भुलाती रही, मैं निभाता रहा,
चाँदनी रात में भी सितारों की याद आता रहा।
अस्क कुछ कहे, जेहन चुप रहे,
जख्म ज़माने से अपनी छुपाता रहा।
इक अजब सी है टीस मन में मेरे,
पर ज़माने को देख कर मुस्कुराता रहा।
कहाँ गयी वो तितलियाँ, कहाँ गए हैं वो फूल,
मैं तो भँवरे की तरह यूँ ही गुनगुनाता रहा।
सब्र में टूटते गए कटती हर एक नज़र से,
ये वक्त है कि हम पे कहर ढाता रहा।
कोई रहबर ना मिला, ना ही मंज़िल का कुछ पता,
बेपरवाह राह पे मैं यूँ ही जाता रहा।
बस एक-एक बूँद को तरस गयी है प्यास मेरी,
और नैन हैं कि आंसुओं की धारा बहाता रहा।
चलना अकेले पड़ा है ज़िन्दगी के सफर में,
हम हैं तन्हा और वो हमें भीड़ में बुलाता रहा।
जल रहे हैं शहर-के-शहर इस मर्म में,
पर मेरा तो गम से पुराना ही नाता रहा।
मयखाने से जाम की तारीफ पूछ ली,
सारी रात शाकी हमें पिलाता रहा।
फर्क देखना हैं तो देख लो काँटे और फूल में,
काँटे हैं कि चुभन देते रहे, और फूल खिल कर भी मुरझाता रहा।
अब रुख की लकीरों को बदलने दो ऐ “हेमंत”,
दिल की अदब तो पता नहीं, और सब से मैं हाथ मिलाता रहा।
चाँदनी रात में भी सितारों की याद आता रहा,
वो भुलाती रही मैं निभाता रहा। मैं निभाता रहा।।
✍️हेमंत पराशर✍️