मैं ना रहनी चाहिए
जन्नत मिले या जहन्नुम, पर करार होना चाहिए।
बेकरारी मे भी तो बस, प्यार होना चाहिए।।
प्यार हो या नफरते, बेहिसाब होनी चाहिए।
हिसाब कैसा भी रहे, बेदाग होना चाहिए।।
दर्द चाहे कितने भी हो, हमदर्द होना चाहिए।
समझ सके जो बात दिल की, ऐसा दिलदार होना चाहिए।।
मैं कहूँ या ना कहूँ, पर वो समझना चाहिए।
दर्द सीने में छुपा हो, बस बाहर निकलना चाहिए।।
तू रहे चाहे कही भी, वह जन्नत ही होनी चाहिए।
मैं रहूँ या ना रहूँ, पर ये मैं ना रहनी चाहिए।।
यार अपने ऐसे हो कि, जान छिड़कनी चाहिए।
बात कैसी भी हो मगर, पर बात कहनी चाहिए।।
जन्नत मिले या जहन्नुम, पर प्यार होना चाहिए।
आँचल मिले या धूप पर, ममता तो होनी चाहिए।।
जिज्ञासाएं ना हो जीवन मे, पर जिज्ञासु तो होना चाहिए।
स्नेह मिले यदि सबका हमें, तो मान रखना चाहिए।।
मान कभी ना अभिमान बने, ये ध्यान रखना चाहिए।
स्वाभिमान सदा अपना हमे, जिंदा रखना चाहिए।।
जन्नत मिले या जहन्नुम, पर इकरार होना चाहिए।
प्रेरणा मिले जिससे हमे, उसका सम्मान होना चाहिए।।
धोखा किसी को ना दे कभी, ऐसा चरित्र होना चाहिए।
ललकार मिलेना हर किसी को, ये गर्व होना चाहिए।।
मैं रहूँ या ना रहूँ, पर ये मैं ना रहनी चाहिए….
ये मैं ना रहनी चाहिए….
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“ललकार भारद्वाज”