मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
संतति का जीवन-श्रृंगार
मैं अनघ,तोरण-वंदनवार
सृष्टि की सृजन हार
मैं नारी हूँ।
मैं इड़ा हूँ, मैं श्रद्धा हूँ
मैं गँगा, मैं वसुधा हूँ
स्वहीन मैं स्वधा हूँ
स्नेह सलिल सुकुमारी हूँ
मैं सृजन की सींचित क्यारी हूँ
मंगल-मोद
वात्सल्य गोद
जगत की जननी
नेह-सुता,भार्या औ भगिनि
मैं बाबुल की दुलारी हूँ
फिर क्यों कोख में मारी हूँ?
खोया निजत्व
प्रबल ममत्व
हर पग सह धर्मिनी
हर पथ अग्रणी
मैं पूजन,मैं भक्ति हूँ
मैं दुर्गा,मैं शक्ति हूँ
मैं पौरुष की अभिव्यक्ति हूँ
सक्षम,सबलों को जनती,
फिर भी मैं अबला,बेचारी हूँ।
क्या मैं दमित लाचारी हूँ?
दामन पे दृग
भयभीत मृग
विषाक्त तृण
निष्कपट, निर्विघ्न
कूलाचों की मैं अधिकारी हूँ
कुटिल,छल-छद्म से अनाड़ी हूँ।
आँचल पर आंख जमाये
हर मोड़ खड़ा दुःशासन है।
पांडव घरों में दुबके हैं,
धृतराष्ट्र हुआ सिंहासन है।
करुण नाद,
अनसुनी फरियाद
पग पग प्रताड़न औ पहरे
सखा सहोदर हुए है बहरे
मैं सदियों से चीत्कारी हूँ।
आज पूछती विकट प्रश्न
लाज रक्षक,कहाँ है कृष्ण?
मैं व्यथित हृदय से पुकारी हूँ।
हे मोहन,तेरी आभारी हूँ।
मान-भंजित क्यूँ द्रौपदी
खम्भ-जकृत मैं चौपदी
है अकथ्य कथ
ये विकट पथ
मै पग पग क्यों प्रताड़ी हूँ?
युग-युग से तिरष्कारी हूँ।
मैं नारी हूँ।
-©नवल किशोर सिंह