मैं नहीं भटकती
मैं नही भटकती
मेरे अरमान भटकते हैं…
नियति की स्याह चादर ओड़े
दर्द में देखो कितना तड़पते हैं
भयावह अँधेरी रातों में
मरहम तो सिर्फ तेरी यादें हैं
मैं कलुषित अभागी विषैली नागिन हूँ
दूर रहो मुझसे कि कहीं
डस ना लूँ तुमको प्रिय
खुशियाँ दूर बस गम ही तो
मेरी तन्हाई भाँपते हैं
ग्रसित शापित मैं हूँ कि
देखो सपने भी दूर कितना भागते हैं
चुरा तो लाई हूँ किस्मत से तुम्हें
अजब एक कंपन है सीने में …
मैं तरसन हूँ एक तड़पन हूँ खुद में
मेरी अपनी परछाई से सहमें
ना जाने कितने अक्स काँपते हैं
खूब दिखाया है आईना हकीकत तूने…
भ्रम जो पाले थे टूट कर बिखरे और
अश्रुओं ने सम्हाले हैं।