मैं नन्हा नन्हा बालक हूँ
नन्हा नन्हा बालक हूँ मैं
मरुस्थल की सैर करता हूँ
चलता चलता थक जाता हूँ
ऊँट को जहाज बनाता हूँ।
नन्हा नन्हा बालक हूँ मैं
मैं भ्रमण लम्बे करता हूँ
गीत खुशी के गाता हूँ मैं
बैठ ऊँट पर जाता हूँ।
नन्हा नन्हा बालक हूँ मैं
बालू पर चलता हूँ मैं
पेड़ देखने जाता हूँ मैं
तो केक्टस ही पाता हूँ मैं।
नन्हा नन्हा बालक हूँ मैं
पौधे लगाना चाहता हूँ
हरियाली अच्छी होती है
सबको बताना चाहता हूँ।
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्झर)
हरियाणा
सम्पर्क 9050978504
प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है।