मैं दीपावली न सुरज न चाँद की
अमावस्या को दीपों से चमकती,
मैं दीपावली न सुरज न चाँद की |
आयी हैं तुमको याद जिस दिन,,
बनवासी लौटा हर्षोल्लास की ||
उस दिन घर-गली को महकाया,
सिता-राम लखन लौट फरमान आया |
थी अमावस्या की काली रात पर,,
उस धाम को दीपों से जगमगाया ||
धुम-धाम से ढोल-नगाडे बजाया,
आ अब लौट आया तो हर्ष मनाया |
इसलिए मैं दीप लिये तेल-बाटकी,,
मैं दीपावली न सुरज न चाँद की ||
मैं दीपों का प्रकाश लिये द्वार तिहारे,
हर्षोल्लास का भाव लिये आई हूँ |
अमावस्या अंधकार मिटाने हरबार,
दीप प्रकाश से घर प्रकाश लायी हूँ ||
चमक – दमक, हर्ष लिये मैं आती,
उम्मीदें लिये अंधकार को महकाती |
दीपोत्सव में चमन का वेश लियें,,
अन्नगिन्नत दीपो से जग को सजाती ||
रात्रि के आसमान को जगाया ,
जैसे सितारों को धरा पर बिछाया, |
गुलजारों सी रातें हैं बहार की,,
मैं दीपावली न सुरज न चाँद की ||
सितारे मुझसे मानो रूठ पढें
कहते दीवाली को, दीपों की बात |
स्वागत करते पर प्रकाश न पहुँचें,
पर दीपों ने जगायी अंधेरी रात ||
दीवाली ने कहाँ सितारों से,
नाराज मत होवों में धरा ले आयी |
सितारों का पर्याय तुम्हारा नक्षत्र हैं,,
जैसे प्रकाश सें दीवाली कहलायी ||
तुम्हारा प्रकाश नभ कों महकाया,
मैंने पटाखों से नभ को चमकाया |
निराश न तारें-दीप भाई जात की,
मैं दीपावली न सुरज न चाँद की ||
तुम नाराज हो टूट जाते धरा पर,,
मैंने तुम्हारा सम्मान नभ दिखाया |
जिसमें प्रसन्न होकर नभ पटाखें,
नभ हर्षाते तुम्हारा सम्मान बताया||
तुम्हारी निराशा को मैंने पटाखो सें,
हर्षोल्लास, प्रसन्नता को दिखाया |
जहाँ देखो वहाँ तुम्हारा चिंगारा,
दीवाली पर मैंने नभ में चमकाया ||
सितारें प्रसन्नता का वेश महकाया ,
नभ में दीवाली पर खिलखिलाया |
रणजीत कहत दीप जग में बहार की,,
मैं दीपावली न सुरज न चाँद की ||
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रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां, राजसमन्द
7300174927