मैं दीपक बनकर जलता हूं
मैं दीपक बन कर जलता हूँ तुम सूरज बन कर छा जाओ
अपने यश का आलोक वृत्त सारे जग को दिखला जाओ
मैं दीपक बन कर जलता हूँ
यदि करना है लकीर छोंटी तो खींचो क़ोई लकीर बङी
नन्ही सी कुटिया के सन्मुख
कर दो अपनीं प्राचीर खड़ी
इस तरह जगत मे ज़ीने का अपना पुरुषार्थ दिखा जाओ
मैं दीपक बन कर जलता हूँ
यदि बन कर रबर जियें जीवन क़ाग़ज मैला हो जायेगा
हर काला धब्बा गर्वान्वित होकर अस्तित्व जताएगा
मत मैली चादर बनो सफेदी का सम्मान बचा जाओ
मैं दीपक बन कर जलता हूँ
ये जीवन एक तपस्या हैं धन वैभव साथ नही जाता
निज धर्म कर्म का चंदन ही है सारे जग क़ो महकाता
बन कर चंदन वन जिओ सुरभि से सारा जग महका जाओ
मैं दीपक बन कर जलता हूँ तुम सूरज बनकर छा जाओ
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
8 वीं रचना